प्रतापगढ किला
Historical Places हमेशा
ही सभी को अपनी ओर खींचते है, लगभग हर एक इंसान की इच्छा होती है की वो Historical
Places को देखे समझे और उन के बारे में अधिक से अधिक जाने। हमने अक्सर
देखा होगा कि अंग्रेज भी हर साल भारत के Historical Places को
देखने आते है। आज की इस कड़ी में हम आज आपको बतायेंगे एक ऐसे Historical Place के बारे में जो मराठा साम्राज्य की विजय का प्रतीक माना जाता है। 1656 में
बने इस Historical Place को आज भी हज़ारों लोग हर महीने देखने
आते है, जिनमें विदेशी लोग भी बहुत होते है ।
Western Indian state महाराष्ट्र के सातारा जिले में स्थित प्रतापगढ़ किला historical
point of view से एक बहुत ही important किला
है, इस किले को साहसी किले के नाम से भी जाना जाता है।यहां 10 नवंबर 1659 को छत्रपति शिवाजी और बीजापुर
सल्तनत के जनरल अफजल खान के बीच लड़ाई हुई थी। छत्रपति शिवाजी द्वारा अफजल खान की
हत्या के बाद, बीजापुर सेना पर निर्णायक मराठा जीत हुई
थी, इसी वजह से इस किले को मराठा विजय का symbol भी माना जाता है। वर्तमान में ये किला महाराष्ट्र का एक बहुत लोकप्रिय tourism
place भी है।
सतारा जिले में महाबलेश्वर
की पहाड़ियों से 24 किलोमीटर दूर पश्चिम में एक विशाल पर्वत पर प्रतापगढ किला है, यह किला जंगल और पहाड़ियों से भी घिरा हुआ है। इस किले का निर्माण मराठा
साम्राज्य के संस्थापक छत्रपती शिवाजी महाराज ने भविष्य के संभावित खतरों को ध्यान
में रखते हुए नीरा और कोयना नदियों के किनारों और पार दर्रे की रक्षा के लिये अपने
प्रधान मंत्री Moropant Trimbak Pingle की देख रेख
में सन् 1656 में कराया था। प्रतापगढ़ किला समुद्र तल से 3454 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। किले के अन्दर एक दूसरा किला भी है। दो भागों
में बंटे इस किले का निचला किला 320 मीटर लम्बा और 110 मीटर चौड़ा है, ऊपरी किला पहाड़ी के शिखर पर बनाया गया था। यह मोटे तौर पर वर्गाकार है और
प्रत्येक तरफ 180 मीटर लंबा है। ऊपरी किले में
महादेव का मंदिर है, मंदिर के बिल्कुल सामने विशाल दरबार का
आयोजन किया जाता था, मंदिर के सामने दरबार इसलिये था कि कोई
भी मंदिर के सामने बैठकर किसी भी प्रकार का झूठ ना बोल सके। छत्रपति शिवाजी महाराज
की वीरता और पराक्रम की कहानी बयां करने वाला ये किला और भी बहुत मायनों में खास
है।
किले में शिवाजी महाराज के
समय का तुलजा भवानी मंदिर है, ऐसा माना जाता है कि सन् 1661
में छत्रपती शिवाजी महाराज ने इस मंदिर की स्थापना की थी। इसमें देवी भवानी की
मूर्ति विराजमान है, जिसके आठ हाथ हैं, मंदिर में 50 फीट लम्बे, 30 फीट चौड़े और 12 फीट ऊंचे
खंबे लगे है, मंदिर में छत्रपती शिवाजी महाराज की तलवार भी
रखी है, ये वही तलवार है जिससे उन्होंने अकेले प्रतापगढ़ की
लड़ाई में अफ़जल खान की सेना के 600 सैनिक मारे थे। मंदिर में प्रवेश करने के लिये
नगाड़ा हॉल से होकर गुजरना पड़ता है जहाँ पर एक बहुत बड़ा ड्रम रखा हुआ है, जिसे खास उत्सवों पर बजाया जाता है, इस मंदिर के पास
मराठा सैनिकों के हथियार आज भी रखे हुए हैं।
साथ ही इस किले में हनुमान
मंदिर भी है, इस मंदिर की स्थापना छत्रपती शिवाजी महाराज जी
के गुरु रामदास स्वामी ने कराई थी। इस मंदिर की खास बात ये है कि यहाँ विराजमान
हनुमान जी का ऐसा रूप कहीँ भी दूसरी जगह देखने को नहीं मिलता।
30 नवंबर 1957 में भारत के
तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने छत्रपती शिवाजी महाराज की कांस्य
घुड़सवारी की एक भव्य मूर्ति का उद्घाटन किया था । साथ ही सन 1960 में किले के अंदर
एक Guest
House और एक National Park बनाया
गया था।
बात आती है अब इस किले के
निर्माण की आवश्यकता की, शिवाजी महाराज को आक्रमणकारी किसी
भी तरह तोड़ना चाहते थे, अफ़जल खान ने शिवाजी महाराज के भाई की
हत्या कर दी थी और उसके बाद वो शिवाजी महाराज को हराना चाहता था, इस बात को शिवाजी महाराज अच्छे से जानते थे, इसी को
ध्यान में रखते हुए शिवाजी महाराज ने आक्रमणकारियों पर नज़र रखने के लिये पहाड़ियों
की ऊंचाइयों पर ये किला बनवाया, ऊंचाई पर बने होने के कारण
बहुत दूर तक नज़र रखी जाती थी, दुश्मन के घोड़े जब इस किले की
तरफ बढ़ते थे तो उड़ती धूल से पता चल जाता था कि दुश्मन आ रहा है।
अफ़जल खान ने शिवाजी महाराज
से समझौता करने के लिये एक मुलाकात की थी, इस मुलाकात से
अफज़ल खान, शिवाजी महाराज की personality से काफी प्रभावित हुआ था और उनकी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया था लेकिन मौका
पाते ही उसने शिवाजी महाराज के ऊपर पीछे से वार कर दिया। शिवाजी महाराज के कपड़ों
के अंदर लोहे का कवच होने की वजह से उन्हें किसी तरह की चोट नहीं आई थी। इसके जवाब
में शिवाजी महाराज ने अपने हाथों में पहने “बाघनाख” से अफ़जल खान पर वार कर उसका पेट चीर दिया था। इसके बाद शिवाजी महाराज ने
अफजल खान की सेना को बुरी तरफ से हरा दिया था।
सन 1818 में अंग्रेजों के साथ हुई तीसरी लड़ाई में मराठा साम्राज्य को बहुत भारी
नुकसान उठाना पड़ा था, साथ ही उन्हे प्रतापगढ़ किले से भी हाथ
धोना पड़ा था।
आज के समय में महाराष्ट्र
में महाबलेश्वर tourism का एक बहुत बड़ा hub है, चारों तरफ पहाड़ियाँ ही पहाड़ियाँ होने के कारण
यहाँ गर्मियों में भी बहुत-ही सुहावना मौसम रहता है, साथ ही
लोग यहाँ ट्रैकिंग करने भी आते है। ट्रैकिंग के दौरान चारो ओर फैली हरियाली का भी
लुत्फ़ उठा जाता हैं। एक बार जो यहाँ घूमने आ जाये, वो
बार-बार यहाँ आना चाहता है।
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तनवीर आलम
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