Neta Ji Ke Darshan

NETA JI KE DARSHAN


अरे आप यहाँ बैठे है? चलिये आइये नेता जी के दर्शन कर आये, कौन से नेता जी आ रहे है? मैंने चौंकते हुए अपने दोस्त मतलूब से पूछा जो कि काफी पसीने से भीग चुका था, अरे मोहन साहब आपको नहीं मालूम, आप कहाँ खोए रहते है? दो दिन पहले तो बताया था मैंने आपकी और हाँ एक महीने से नेता जी के बैनर, पोस्टर भी जगह-जगह लगे है, चलिये उठिए अब देर मत करिए। मतलूब आगे बोला- मुझे अच्छे से याद है आज से पाँच साल पहले जब MLA साहब दर्शन देने आये थे तो आपकी वजह से मैं ना तो उनका बहसहन सुन पाया था और ना ही उनके दर्शन कर पाया था। इसलिये आज मैं आपके पास आज चार घंटे पहले आया हूँ। आप भी जरा जल्दी कीजिए, जल्दी जायेंगे तो आगे जगह बैठने की मिल जायेगी, देर हो गई तो दूर से भाषण ही सुना जायेगा, दर्शन नहीं हो पायेंगे । अरे मतलूब साहब आप बैठिए तो सही आप तो एक ही साँस में बोले जा रहे है, आप जरा आराम कीजिए, मैं अभी तैयार होकर आया। मैं तैयार हुआ और मतलूब साहब के साथ MLA साहब की रैली में शामिल होने चल दिया। 

जल्द ही हम हम दोनों उस स्थल पर पहुँच गये जहाँ रैली होनी थी, रैली की भीड़ देखते हुए मैंने मतलूब साहब से कहा- मतलूब साहब अब आपको आगे जगह नहीं मिलेगी, चलो यहीं कहीँ बैठ जाते है? हम दोनों एक जगह बैठ गये और MLA साहब का इंतज़ार करने लगे, जैसे-जैसे नेता जी के आने का समय करीब आ रहा था वैसे-वैसे भीड़ और बढ़ती जा रही थी, हजारों की तादाद में लोग आ चुके थे। 

भीड़ के साथ-साथ गर्मी में बढ़ती जा रही थी, गर्मी से परेशान होकर मैं ने मलूब साहब से कह ही दिया - अरे मतलूब साहब MLA साहब ने रैली का समय इस गर्मी में 11:00 बजे का सही नहीं रखा, देखिए अब मुझसे ये गर्मी बर्दाश्त नहीं हो रही है। लेकिन मतलूब साहब को मेरी बात से अब क्या लेना देना, उन्होंने या तो मेरी बात सुनी ही नहीं थी या फिर मेरी बात को सुनकर अनसुना कर दिया था तभी तो मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया था, बस उनका तो पूरा ध्यान मंच की तरफ था। 

एक तरफ गर्मी अपने चरम पर थी तो दूसरे भीड़ इतनी कि साँस लेना दूभर हो रहा था, उस पर अब प्यास भी पूरी शिद्दत से लगने लगी थी, मैं वहाँ से हटा और पाणी तलाशने लगा मगर मुझे दूर-दूर तक कहीँ पीने का पाणी नहीं मिल, अब लगने लगा था कि क्यों मैं मतलूब साहब की बातों में आकर चला आया, खैर अब आ ही गया तो ऐसे मतलूब साहब को अकेला छोड़कर नहीं जा सकता था। घूम फिर कर वापस वहीं चल आया जहाँ मतलूब साहब बैठे हुए थे। 

MLA साहब ने 11 बजे का समय दिया था, पर 1:00 बज चुका थे और अभी तक MLA साहब का दूर-दूर तक कोई अता-पता नहीं था। आखिर जब मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ तो मैंने मतलूब साहब से कहा- देखिए अब इंतज़ार बहुत हुआ, अब घर चला जाये। मेरी बात मतलूब साहब को नागवार गुजरी मगर कुछ कह नहीं पाये सिवाये मुझे दिलासा देने के - अरे बही अभी रुकिए, देखिए अभी ही तो अनाउन्स हुआ था कि नेता जी घर से चल दिये है। इस पर मैंने भी झुँझ लाते हुए अपनी बात कह दी - अरे मतलूब साहब पिछले 3 घंटे से आपके नेता जी अपने घर से चल ही रहे है, लेकनी मेरी झुँझलाहट उन्हे कहाँ दिखाई दे रही थी। 

धीरे-धीरे समय गुजरता गया और शाम के 5 बज गये लेकिन नेता जी का अभी तक भी कुछ पता नहीं था। दूसरी तरफ अब धीरे-धीरे भीड़ भी छटने लगी थी, उसके बाद भी अनाउन्स यही हो रहा था कि आप कहीँ नया जाये नेता जी आने ही वाले है मगर अब बहुत लोग ये उम्मीद छोड़ चुके थे कि नेता जी अब नहीं आयेंगे और अपने घरों को लौटने लगे थे। 

अब तो मेरी हिम्मत बिल्कुल ही टूट चुकी थी, गर्मी तो जैसे-कैसे सह ली थी पर प्यास और भूख अब बहुत तेज लग रही थी, तो मैंने हिम्मत करके मतलूब साहब से कह ही दिया कि अब मैं घर जा रहा हूँ, आपको अगर आपके नेता जी के दर्शन हो जाये तो वापसी में मुझे घर पर मिलते हुए ज़रूर जाना। इस पर भी नेता जी के चहेते मतलूब साहब बोले - भाई तो नेता जी दर्शन करके ही आऊँगा, अब नेता लोग है देर सबेर तो हो ही जाती है, इसके बाद मैं एक पल भी वहाँ नहीं रुक और घर वापस लौट गया।

रात के 9 बजे मतलूब साहब मेरे घर पर आये, बहुत खुश लग रहे थे, आते ही मुझ से बोले - देखिए मैंने आप से कहा था ना कि नेता जी ज़रूर आयेंगे। अब मैं इस बात पर बिल्कुल भी बहस नहीं चाहता था, इसलिये बात को घुमाते हुए कहा- अच्छा ये बताइए मतलूब साहब, नेता जी रैली में क्या भाषण दिया? मेरे इस सवाल को सुनते ही मतलूब साहब ने पूरे जोश के साथ एक ही साँस में कहा - नेता जी ने कहा है कि वो हमारी हर एक मुसीबत और परेशानी में हमारा पूरा-पूरा साथ देंगे। इतना कहने के बाद मतलूब साहब खामोश हो गये, मुझे अलग था कि आगे भी कुछ कहेंगे अमगर वो नहीं बोले तो मैंने ही पूछा- और कुछ? इस पर एक दम बड़ी सादगी से जवाब देते हुए कहा- अरे मोहन साहब  आज नेता जी को कहीँ किसी जरूरी मीटिंग में जाना था इसलिये वो दो मिनट से ज्यादा नहीं रुक पाये, अब दो मिनट में तो लोग उनका सही से सम्मान भी नहीं कर पाये, मेरे सौभाग्य तो यही है कि मैं नेता जी के दर्शन कर पाया। मैंने भी उनकी इस बात में हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा- आप भाग्यशाली तो है, जो आपकी नेताजी के दर्शन हो गये, इस बात से खुश होते हुए वो अपने घर को लौट गये। 

मतलूब साहब तो चैन से जाकर सो गये मगर मैं नहीं सो पाया, रात भर बस यही सोचता रहा कि कब इन नेताओं का तिलिस्म टूटेगा, कब लोग समझेंगे कि नेता ने स्वेछा से जनता की सेवा करना चुना था ना कि अपनी सेवा करवाना, कुछ बातें कुछ लोगों को समझाई नहीं जा सकती । 

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Tanveer Alam

Year 2002

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