Jan Gan Man जन गण मन

    एक सभा का कड़वा सच

    क्या कहा जाए क्या ना कहा जाये, बेवजह के क्रेडिट लेने की ऐसी होड है कि पूछो मत। कल (17 जुलाई 2022) एक एसोसिएशन की आम सभा हुई, सभा जैसे हीनी थी वैसे हुई। जिसके सवाल जवाब थे वो पूछे गये बताये गये, सब कुछ वैसा ही हुआ जैसा agenda में था। 

अन्त में एक साहब उठे और उसने सभा को धन्यवाद देते हुए ये इच्छा प्रकट की कि सभा शुरू करने से पहले या सभा के अन्त में राष्ट्र गान हो तो अच्छा है, उसके इस सुझाव को सब ने एक दम मान लिया और उसी सज्जन पुरुष से कहा गया कि आप मंच पर आईये वो साहब आ गये जैसे ही वो मंच पर आए तो उन्हे माइक दे दिया गया, इसी बीच सभी खड़े हो गये, राष्ट्र गान शुरू हो गया, 

जन गण मन अधिनायक जय हे  
भारत भाग्य विधाता  
पंजाब सिंध गुजरात मराठा 
द्रविड़ उत्कल बंग  
विंध्य हिमाचल यमुना गंगा 
उच्छल जलधि तरंग 
तव शुभ नामे जागे  
तव शुभ आशिष मांगे  
गाहे तव जय गाथा   
जन गण मंगल दायक जय हे  
भारत भाग्य विधाता 
जय हे जय हे जय हे  
जय जय जय जय हे
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राष्ट्र गान सम्मान के साथ पूरा हो गया, पर राष्ट्र गान के बीच जो हुआ वो पीड़ा देने वाला था, 
हुआ ये कि जिन सज्जन ने राष्ट्र गान का सुझाव दिया था उनको राष्ट्र गान बिल्कुल भी याद नहीं था, उन सज्जन को पहले से ही पाता होगा कि राष्ट्र गान याद नहीं है, ऐसे में उनको माइक नहीं लेना चाहिये था, दूसरे एक हाथ में उनके माइक था तो दूसरे हाथ को वो ऊपर उठकर हिलाये जा रहे थे जो कि बिल्कुल गलत है, ये सभी को ज्ञात है कि राष्ट्र गान के समय सावधान की मुद्रा में खड़ा होना चाहिये, मगर वो सज्जन तो जैसे झूम से रहे हो जबकि उनको राष्ट्र गान याद नहीं था। 
राष्ट्र गान पूरा होने के बाद मंच से भी और सामने से भी उनको तीखे अंदाज़ में समझाया गया कि अगली बार राष्ट्र गान याद करके आये। 
अब वो सज्जन नहीं मानने वाले और ना ही याद करने वाले, क्योंकि उनको मतलब अपने प्रचार से है, और बाहर निकल कर ये गाथा गाने से है कि वहाँ उसने राष्ट्र गान शुरू कराया। लेकिन इस उस में वो क्या कर गया उसको ना मंच पर अहसास था और ना ही वहाँ से उतरने के बाद। 


ईश्वर उस सज्जन को सद बुद्धि दे 

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तनवीर आलम 


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