Krishi aur Kisan

 पैर हों जिनके मिट्टी में, दोनों हाथ कुदाल पर रहते हैं

सर्दी , गर्मी या फिर बारिश, सब कुछ ही वे सहते हैं

आसमान पर नज़र हमेशा, वे आंधी तूफ़ां सब सहते हैं

खेतों में हरियाली आये, दिन और रात लगे रहते हैं

मेहनत कर वे अन्न उगाते, पेट सभी का भरते हैं

वो है मसीहा मेहनत का, उसको किसान हम कहते हैं


 

कड़ी धूप हो या हो शीतकाल,

हल चलाकर न होता बेहाल.

रिमझिम करता होगा सवेरा,

इसी आस में न रोकता चाल.

खेती बाड़ी में जुटाता ईमान,

महान बहुत हैं, है वो किसान.

खेती का गौरवपूर्ण उल्लेख विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद में भी मिलता है ।

अक्षैर्मा दीव्यः कृषिमित्‌ कृषस्व वित्ते रमस्व बहुमन्यमानः । (ऋग्वेद-३४-१३)

अर्थात जुआ मत खेलो, खेती करो और सम्मान के साथ धन पाओ

असभ्यता को खत्म कर सभ्यता की शुरूआत करने वाला ये किसान हर एक काल, हर एक युग में

सम्मान का हक़दार है और सम्मान पा रहा है,

अगर विश्व पटल पर देखें तो यही किसान हर दिन विश्व भर के लगभग 780 करोड़ लोगो से भी ज्यादा का पेट भर रहा है, हर दिन, हर पल बिना किसी छुट्टी के, किसान खेती करने में जुटा रहकर हम सब के लिये अन्न उगाता है, इसलिये किसान को अन्नदाता कहते है! 


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